क्या प्रारंभ हो चुका है शहर से पलायन?
प्रश्नवाचक चिन्ह उदृत किया गया है हेडिंग के साथ वो इसलिए क्योंकि हमारे आंकडे तो मजबूत है लेकिन प्रश्न खड़े करने वालों की कमी नहीं है । शहर शुन्य के भंवर में है ! किसी की व्यक्तिगत पीड़ा ही समझें क्योंकि विश्लेषण में समय की बर्बादी और विश्वास अविश्वास के प्रश्न जन्म लेंगे । यही माने की यह एक व्यक्तिगत सोच है ? लेकिन अपने स्तर पर इस विश्लेषण को टटोलने और वास्तविकता जानने का प्रयास अवश्य करें । नीमच शहर जिसकी किर्ती कई माईनों में दूर दराज तक फैली हुई थी, इसकी लालमाटी की महक इस क्षेत्र की महत्ता के माईने अलग थे । क्या वो धूल धूसरीत होने की कगार पर है । विचारणीय प्रश्न है, इस प्रश्न पर जनता के ध्यानाकर्षण की बजाय जनप्रतिनिधियों का आकर्षण आवश्यक है क्योंकि सबकुछ छिन रहा है ? और नव सृजन की कोई व्यवस्था नहीं है । व्यापार शनै-शनै समाप्ती की ओर है । जागरुकता व भविष्य की सोच के अभाव में इस क्षेत्र से छिनने का प्रयास निरंतर जारी है और हम सिर्फ बहलाने और फुसलाने की व्यवस्थाओं के वशीभूत निर्णयों को अंगीकार कर रहे हैं, बिना सोचे की यह क्यों हो रहा है? आपका पड़ोसी आपसे ज्यादा चतुर है और अपने क्षेत्र के हित का संरक्षण जानता है । पूर्व में स्थापित लोको शेड दशकों तक नीमच में रहा और इसके स्थानांतरण की प्रक्रिया पर हम विरोध के स्वर मुखर नहीं कर पाए । खनीज के अथाह भंडार को गर्भ में समेटे रखने वाली सीमेंट फैक्टी को हम न तो जिंदा रख पाए और न ही बंद होने के बाद हम उसे प्रारंभ करने हेतु अपनी दृढ़ता प्रदर्शित कर पाए । मण्डी आधारित शहरीय व्यवस्थाओं को बनाएं रखने में भी हम नाकाम साबित हुए । नीमच के सीआरपीएफ कैम्प और आसपास के क्षेत्रोंसे आने वाले ग्राहकों की तिमारदारी भी हम नहीं कर पाए । बाजारों में सन्नाटा पसर गया और क्षणिक नहीं लम्बे समय से यह जारी है लेकिन हमने इसके पीछे के कारणों को जानने तक का प्रयास नहीं किया । क्षेत्र से लगी सीमाओं पर बसावट वाले क्षेत्रों की अगर हम बात करें तो वो चमन हो गए उनके यहां उद्योग भी पनपे और आवश्यकताओं की आवाज बुलंद होने पर उसकी पूर्णता पर गंभीरता दर्शाते हुए जनप्रतिनिधियों ने अपनी उपयोगिता और क्षेत्र के प्रति उनके उत्तरदायित्व के निर्वहन ( न की सत्ता की लालसा) की जीवटता को बनाए रखा और उसे हांसिल किया ''चम्बल का पानी'' इसका उदाहरण मात्र है । हम विरक्त हैं और पडोसी लाभांवित हो रहे हैं कारण सिर्फ एक ही की हमारी आवाज में बुलंदी और मर्दाना ताकत का अभाव है । शहर में रोजगार पाने के अवसर लगभग समाप्त हो चुके हैं । नया सृजन या बड़ी व्यवस्थाओं को स्थापित करने की संभावनाएें शुन्य है । रोजमर्रा की व्यवस्थाओं को चलाने जितना मात्र ही हम कर पा रहे हैं । युवा पीढ़ी अपना अलग साम्राज्य स्थापित करने में मशगुल है और इस पीढ़ी में जो जिम्मेदारी को समझते हैं वो इस क्षेत्र से पलायन कर रहा है और जो यहां है वो सट्टे अौर डब्बे के आगोश में है । इसी के साथ नशाखोरी में इजाफा हो रहा है , दिन धुएें में गुजरता है तो रात बहकने के साथ ही समाप्त हो रही है । पलायन को रोकने के प्रयास प्रारंभ होना आवश्यक है । जनप्रतिनिधियों व प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए । साथ ही क्षेत्र में रोजगार सृजन और नई संभावनाओं को तलाशने के प्रयास शीघ्र प्रारंभ होना चाहिए ताकि पलायन का क्रम जो प्रारंभ हो रहा है, उसे रोका जा सके ।
- राहुल जैन
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